Old Pension Scheme 2024: पुरानी पेंशन योजना (OPS) भारत में सरकारी कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण सामाजिक सुरक्षा उपाय थी। यह योजना 2004 से पहले लागू थी और इसने सरकारी कर्मचारियों को उनकी सेवानिवृत्ति के बाद वित्तीय सुरक्षा प्रदान की।
OPS के तहत, कर्मचारियों को उनके अंतिम वेतन और सेवा की अवधि के आधार पर एक निश्चित मासिक पेंशन मिलती थी। यह व्यवस्था कर्मचारियों को बुढ़ापे में आर्थिक स्थिरता का आश्वासन देती थी।
नई पेंशन योजना का आगमन
2004 में, सरकार ने नई पेंशन योजना (NPS) की शुरुआत की। NPS एक अलग तरह की योजना है जिसमें कर्मचारी और सरकार दोनों पेंशन फंड में योगदान करते हैं। इस योजना में पेंशन की राशि बाजार के प्रदर्शन पर निर्भर करती है। NPS ने कुछ नए फायदे पेश किए, जैसे कि अधिक लचीलापन और पोर्टेबिलिटी, लेकिन इसमें गारंटीकृत पेंशन का अभाव था।
OPS और NPS में मुख्य अंतर
OPS और NPS में कई महत्वपूर्ण अंतर हैं। OPS एक निश्चित लाभ योजना है, जबकि NPS एक निश्चित योगदान योजना है। OPS में, पेंशन की राशि पहले से तय होती है, जबकि NPS में यह बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करती है। NPS अधिक लचीला है और विभिन्न क्षेत्रों के कर्मचारियों के लिए उपलब्ध है, जबकि OPS केवल सरकारी कर्मचारियों के लिए थी।
पुरानी पेंशन योजना की वापसी की मांग
हाल के वर्षों में, कई सरकारी कर्मचारी संगठनों ने OPS को वापस लाने की मांग की है। उनका तर्क है कि OPS उन्हें बेहतर वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती है। कुछ राज्य सरकारों ने भी अपने कर्मचारियों के लिए OPS को फिर से शुरू करने की घोषणा की है। यह मांग मुख्य रूप से NPS की अनिश्चितता और बाजार जोखिमों के कारण उठी है।
सरकार का रुख
केंद्र सरकार अभी तक OPS को पूरी तरह से वापस लाने के पक्ष में नहीं दिखी है। वर्तमान में, सरकार NPS में सुधार पर विचार कर रही है। एक प्रस्ताव के अनुसार, सरकार NPS के तहत 50% पेंशन की गारंटी देने पर विचार कर रही है। हालांकि, कई कर्मचारी संगठन इस सुधार से संतुष्ट नहीं हैं और पूर्ण OPS की बहाली की मांग कर रहे हैं।
पेंशन योजनाओं का मुद्दा भारत में सरकारी कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बना हुआ है। जहां OPS वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती है, वहीं NPS अधिक लचीलापन और आधुनिक वित्तीय प्रणाली के साथ तालमेल बिठाती है।
सरकार को ऐसा समाधान खोजना होगा जो कर्मचारियों की चिंताओं को दूर करे और साथ ही देश की आर्थिक स्थिति को भी ध्यान में रखे। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मुद्दे पर क्या निर्णय लेती है और कैसे वह कर्मचारियों की मांगों और देश की आर्थिक वास्तविकताओं के बीच संतुलन बनाती है।
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